Monday, November 17, 2014

आईआईटी कंसोर्टियम द्वारा प्रस्तुत गंगा बेसिन मैनेजमेंट प्लान की समीक्षा: प्रो. बी.डी. त्रिपाठी

  1. आईआईटी कंसोर्टियम द्वारा 16 करोड़ रुपये की लागत से तैयार की गयी गंगा बेसिन मैनेजमेंट रिपोर्ट,  इंटरनेट से प्राप्त आंकड़ों पर आधारित एक सतही रिपोर्ट है. अभी तक इंटरनेट पर उपलब्ध आंकड़ों की वैज्ञानिक वैधता और विश्वसनीयता संदिग्ध रही है. कंसोर्टियम द्वारा स्वयं के दिए गए ३८ सन्दर्भों में २६ सन्दर्भ इंटरनेट से लिए गए हैं.
  2. गोमुख से गंगासागर तक गंगा तीन प्रमुख पारिस्थितिकी तंत्रों - पर्वतीय, मैदानी और डेल्टा - में विभाजित है. प्रत्येक तन्त्र की अपनी अलग-अलग विशेषताएं और समस्याएँ हैं, जिनका समाधान भी उन्ही के अनुरूप किया जाना चाहिए. परन्तु कंसोर्टियम की रिपोर्ट में इन तीन पारिस्थितिकी तंत्रों की प्रमुख समस्याओं के समाधान एवं उनके संरक्षण पर कोई ध्यान नहीं दिया गया है.  
  3. भारत सरकार द्वारा वर्ष 2008 में गंगा को राष्ट्रीय नदी घोषित कर दिया गया. परन्तु अभी तक गंगा पांच राजनैतिक प्रदेशों उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड एवं पश्चिम बंगाल के नियंत्रण में है. गंगा के पानी का उपभोग, उसका संरक्षण, प्रबंधन एवं विभिन्न योजनाओं का क्रियान्वयन आज भी इन्ही राजनैतिक प्रदेशों के नियंत्रण में है. पिछले 29 वर्षों में इन प्रदेशों द्वारा गंगा संरक्षण कार्यक्रमों की असफलताओं को देखते हुए गंगा का केंद्रीय नियंत्रण अति आवश्यक है, परन्तु आईआईटी कंसोर्टियम की रिपोर्ट में इस प्रमुख बिंदु पर कोई चर्चा नहीं की गई है.
  4. आईआईटी कंसोर्टियम ने गंगा की पारिस्थितिकीय आवश्यकताओं, सामाजिक-सांस्कृतिक-धार्मिक रीतियों और कुम्भ-स्नान जैसे पर्वों को ध्यान में रखते हुए गंगा में पानी के बहाव और उसकी गहराई का आंकलन अपने स्तर पर नहीं किया. इस रिपोर्ट में माँ गंगा से जुड़े गहन और संवेदनशील सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक विषयों को दरकिनार किया गया है.
  5. रिपोर्ट में की गयी गंगाजल के न्यूनतम प्रवाह की संस्तुति पर्यावरण विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित नहीं है, क्योंकि प्राकृतिक वातावरण में गंगाजल का प्रवाह न्यूनतम स्तर से नीचे जाते ही बहुत-से संवेदनशील जंतु एवं वनस्पतियों की प्रजातियां स्वतः समाप्त हो जायेंगी.
  6. रिपोर्ट में महसीर मछली के आधार पर गंगा में न्यूनतम ०.५ मीटर पानी की संस्तुति नदी के पारिस्थितिकी तन्त्र के प्रति पूर्ण अज्ञानता को प्रदर्शित करती है, क्योंकि यदि भारत सरकार द्वारा राष्ट्रीय जलीय जंतु के रूप में घोषित गंगा डॉलफिन को भी ध्यान में रखा गया होता तो कम से कम ३-४ मीटर पानी की संस्तुति की गयी होती.
  7. आईआईटी कंसोर्टियम की रिपोर्ट में गंगा के अविरलता की आवश्यकता की बात तो कही गयी है परन्तु गंगा में पानी के प्रवाह को कैसे बढाया जाए, इसके बारे में कोई सलाह नहीं दिया गया है.
  8. रिपोर्ट में सुझायी गयी किसी भी परियोजना के लिए आवश्यक "कॉस्ट बेनिफिट एनालिसिस" नहीं किया गया है.
  9. नदी पारिस्थितिकीय तन्त्र के प्रबंधन में खाद्य श्रृंखला, पोषक तत्त्वों के चक्रण और प्रदूषकों के अपघटन द्वारा सबसे महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करने वाले सूक्ष्म जीवों के संरक्षण हेतु कोई सुझाव नहीं दिया गया है.
  10. रिपोर्ट में सीवेज ट्रीटमेंट के लिए प्रस्तुत "डिजाइन बिल्ड फाइनेंस ऑपरेट मॉडल" कई प्रकार की समस्याओं को उत्पन्न कर सकता है क्योंकि भारत में 'वाटर सेक्टर' के निजीकरण से उत्पन्न समस्याएँ सर्वविदित हैं. अतः इसके स्थान पर सीवेज ट्रीटमेंट के लिए "पब्लिक फाइनेंसिंग एंड पब्लिक कम्यूनिटी कंट्रोल" पर आधारित मॉडल को प्रस्तावित किया जा सकता है.
  11. अधिक क्षमता वाले सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों की स्थापना के लिए भूमि का चयन किन आधारों पर किया जाये, इसके बारे में कोई भी सुझाव नहीं दिया गया है.
  12. उत्तराखंड में विकास और निर्माण कार्यों के नाम पर किए जा रहे अंधाधुंध ब्लास्टिंग से हिमालय का पारिस्थितिक तन्त्र बुरी तरह से प्रभावित होता जा रहा है परन्तु कंसोर्टियम की रिपोर्ट में इनके संरक्षण हेतु कोई ठोस सुझाव नहीं दिया गया है.
  13. उत्तराखंड में वायुमंडल के कम दबाव के कारण तेज हवाएं चलती हैं, जिनका उपयोग पवनचक्की के माध्यम से विद्युत् उत्पादन करने में किया जा सकता है. परन्तु रिपोर्ट में विद्युत् उत्पादन के लिए सौर एवं पवन ऊर्जा के उपयोग हेतु कोई सुझाव नहीं दिया गया है.
  14. रिपोर्ट में भागीरथी, अलकनंदा एवं मंदाकिनी जैसी गंगा की प्रमुख शीर्ष धाराओं पर बनाए गए बांधों एवं जल-विद्युत् परियोजनाओं का कोई विकल्प प्रस्तुत नहीं किया गया है.
  15. रिपोर्ट में उत्तराखंड के आर्थिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वहन करने वाले प्राकृतिक सौन्दर्य एवं धार्मिक यात्रा से जुड़े पर्यटन के विषय में प्रमुखता से चर्चा नहीं की गयी है.
  16. रिपोर्ट में गंगा की शीर्ष धाराओं पर बांधों के निर्माण से लगातार पानी के प्रवाह में आ रही कमी के कारण खंडित होती अथवा तालाबों के रूप में निरंतर परिवर्तित हो रही गंगा के प्राकृतिक स्वरूप को बनाए रखने हेतु कोई ठोस सुझाव नहीं दिया गया है.
  17. रिपोर्ट में सरकार द्वारा हल्दिया से इलाहाबाद तक प्रस्तावित जलमार्ग के पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में कोई चर्चा नहीं की गयी है.