Wednesday, January 20, 2021

ईकोस्किल्ड गंगामित्रों द्वारा स्वच्छता का महाअभियान

नमामि गंगे परियोजना के अन्तर्गत महामना मालवीय गंगा शोध केन्द्र, काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के चेयरमैन एवं प्रख्यात पर्यावरण वैज्ञानिक प्रोफेसर बीडी त्रिपाठी के निर्देशन में प्रधानमंत्री के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में शूलटंकेश्वर से राजघाट के बीच विभिन्न गंगा घाटों पर करीब 250 ईको-स्किल्ड गंगामित्रों के कई टीमों जैसे-अविरल गंगा, निर्मल गंगा, आध्यात्मिक गंगा, अर्थ गंगा आदि द्वारा स्वच्छता का महाअभियान चलाया गया। गंगामित्रों ने घाटों पर उपस्थित गंगा सेवियों, नाविकों, दूकानदारों, रेस्तरां मालिकों एवं श्रद्धालुओं आदि को भारत सरकार द्वारा चलाये गये स्वच्छता अभियान तथा मां गंगा की अविरलता और निर्मलता के महत्व को समझाया। इस अवसर पर गंगामित्रों एवं उनके सहयोगियों ने स्वच्छता का कार्य स्वयं कर लोगों को संदेश देने का कार्य किया। इतना ही नहीं गंगा के पास के कई विद्यालयों में बाल गंगामित्रों को भी इस कार्य के लिये शिक्षित किया। उन्होंने कहा कि दुकानों से निकलने वाले कचरों को गंगा में न फेंके उसके लिये नमामि गंगे द्वारा लगाये गये कूड़ेदान का प्रयोग करें।


सुपर एक्सप्रेस टीम द्वारा विश्वसुन्दरी पुल गढ़वाघाट पर स्वच्छता का महाअभियान चलाकर घाट के किनारे मूर्ति विसर्जन हेतु बने कुण्ड में पड़े अपशिष्टों को कुडे़दान में डाला गया तथा मलहिया प्राथमिक विद्यालय के बच्चों द्वारा कला व निबन्ध प्रतियोगिता के माध्यम से स्वच्छता एवं पर्यावरण संरक्षण का संदेश भी दिया गया। अविरल गंगा टीम द्वारा बनारस के घाटों पर युवाओं को गंगा के स्वच्छता के प्रति जोड़ने का प्रयास किया तथा लोगों को सक्रिय भूमिका निभाने का संकल्प भी दिलाया गया। गंगा घाटों पर श्रद्धालुओं को गंगा स्नान और कपड़े धुलने वक्त साबुन का प्रयोग न करने के लिये जागरूक एवं प्रेरित किया तथा साबुन के उपयोग से नदी में होने वाले प्रदूषण एवं अन्य समस्याओं के बारे में विस्तृत जानकारी दी। 

इस जागरूकता अभियान में अविरल गंगा टीम के संघमित्रा, श्याम लोकवानी, रोहित विश्वकर्मा, सुपर एक्सप्रेेस टीम से धर्मेन्द्र पटेल, घनश्याम, मंजू, संध्या, वैष्णवीं, निकिता एवं निर्मल गंगा टीम से पंकज सिंह, रोहित सिंह, अंजली मिश्रा, सभ्या विश्वकर्मा, रवि, प्रियंका, निधि, सूरज के साथ-साथ करीब 500 से अधिक लोगों ने इस कार्यक्रम में भाग लिया।

पेयजल की उपलब्धता में गंगा की भूमिका

युगों-युगों से गंगा को मोक्षदायिनी माना गया है तथा भारत में गंगा की पूजा माँ गंगा के रूप में की जाती है। गंगा का यह महत्व उसके पानी के औषधीय गुणों तथा उसमे उपस्थित बैक्टिीरियोफाज के कारण है। गंगा हमारी धार्मिक, आर्थिक एवं सामाजिक परम्परा की वाहक ही नहीं है वरन् यह गंगा बेसिन में रहने वाले 45 करोड़ लोगों के जीवन की आधार तथा पेयजल उपलब्ध कराने वाली एक मात्र नदी है। गंगा एवं इसकी सहायक नदियों के द्वारा उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड एवं पश्चिमी बंगाल के साथ-साथ कई अन्य प्रदेशों को भी पेयजल उपलब्ध कराया जाता है। दुर्भाग्यवश पिछले दशकों में मानव की भोगवादी सभ्यता ने आधुनिक विकास के नाम पर गंगा के किनारे बसे शहरों से मल-जल तथा कारखानों से निकलने वाले विषाक्त पदार्थों को विभिन्न नालों के माध्यम से गंगा में डाला जारहा है। जिसके कारण गंगा के पानी के साथ-साथ भूजल भी प्रदूषित हो रहा है। गंगा के किनारे श्मशान घाटों से प्रतिवर्ष कई लाख मुर्दों के जलाये जाने से लाखों टन राख एवं अधजला मांस भी गंगा में विसर्जित किया जाता है। इतना ही नहीं लोगों की मान्यता के अनुसार उनके मरे हुये जानवरों को गंगा में फेकने से मुक्ति मिल जायेगी, हजारों मृत जानवरों को भी गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है। जिसके कारण गंगाजल और भी प्रदूषित होता जारहा है।

अतः पूरे गंगा बेसिन क्षेत्र में पेयजल की सर्वाधिक समस्या होती जा रही है। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री के प्रयास से राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा मल-जल तथा कारखानों के शोधन का प्रयास किया जा रहा है, फिर भी गंगा के प्रवाह में निरन्तर कमी के कारण गंगा की घुलनशील क्षमता में कमी आती जा रही है। गंगा की घुलनशील क्षमता में कमी के कारण गंगा एवं भू-जल के रूप में उपलब्ध पेयजल के प्रदूषण का गंभीर खतरा भी बढ़ता जा रहा है। अतः 45 करोड़ लोगों के पेयजल की आधार गंगा एवं उसकी सहायक नदियों की अविरलता एवं निर्मलता को बनाये रखने हेतु गंगा की पूरी पारिस्थिकीय तंत्र को समझकर उसके अनुरूप कार्य करना पड़ेगा। जिससे गंगा बेसिन क्षेत्र में पेयजल की उपलब्धता के साथ-साथ गंगा पर आधारित लोगो के जीवन को बचाया जा सके।