युगों-युगों से गंगा को मोक्षदायिनी माना गया है तथा भारत में गंगा की पूजा माँ गंगा के रूप में की जाती है। गंगा का यह महत्व उसके पानी के औषधीय गुणों तथा उसमे उपस्थित बैक्टिीरियोफाज के कारण है। गंगा हमारी धार्मिक, आर्थिक एवं सामाजिक परम्परा की वाहक ही नहीं है वरन् यह गंगा बेसिन में रहने वाले 45 करोड़ लोगों के जीवन की आधार तथा पेयजल उपलब्ध कराने वाली एक मात्र नदी है। गंगा एवं इसकी सहायक नदियों के द्वारा उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड एवं पश्चिमी बंगाल के साथ-साथ कई अन्य प्रदेशों को भी पेयजल उपलब्ध कराया जाता है। दुर्भाग्यवश पिछले दशकों में मानव की भोगवादी सभ्यता ने आधुनिक विकास के नाम पर गंगा के किनारे बसे शहरों से मल-जल तथा कारखानों से निकलने वाले विषाक्त पदार्थों को विभिन्न नालों के माध्यम से गंगा में डाला जारहा है। जिसके कारण गंगा के पानी के साथ-साथ भूजल भी प्रदूषित हो रहा है। गंगा के किनारे श्मशान घाटों से प्रतिवर्ष कई लाख मुर्दों के जलाये जाने से लाखों टन राख एवं अधजला मांस भी गंगा में विसर्जित किया जाता है। इतना ही नहीं लोगों की मान्यता के अनुसार उनके मरे हुये जानवरों को गंगा में फेकने से मुक्ति मिल जायेगी, हजारों मृत जानवरों को भी गंगा में प्रवाहित कर दिया जाता है। जिसके कारण गंगाजल और भी प्रदूषित होता जारहा है।
अतः पूरे गंगा बेसिन क्षेत्र में पेयजल की सर्वाधिक समस्या होती जा रही है। हमारे वर्तमान प्रधानमंत्री के प्रयास से राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा मल-जल तथा कारखानों के शोधन का प्रयास किया जा रहा है, फिर भी गंगा के प्रवाह में निरन्तर कमी के कारण गंगा की घुलनशील क्षमता में कमी आती जा रही है। गंगा की घुलनशील क्षमता में कमी के कारण गंगा एवं भू-जल के रूप में उपलब्ध पेयजल के प्रदूषण का गंभीर खतरा भी बढ़ता जा रहा है। अतः 45 करोड़ लोगों के पेयजल की आधार गंगा एवं उसकी सहायक नदियों की अविरलता एवं निर्मलता को बनाये रखने हेतु गंगा की पूरी पारिस्थिकीय तंत्र को समझकर उसके अनुरूप कार्य करना पड़ेगा। जिससे गंगा बेसिन क्षेत्र में पेयजल की उपलब्धता के साथ-साथ गंगा पर आधारित लोगो के जीवन को बचाया जा सके।
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